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लेखनी प्रतियोगिता -03-Oct-2022



प्रेम क्या है
क्या ये कर्म है
जो किया जा सकता है
क्या वस्तु 
जो दिया जा सकता है।

क्या ये घटना है
जो घट जाती है
या कोई भरम
जो हृदयपटल से हट जाती है।

किस आधार पर कोई
कहता है प्रेम करता हूँ
मैं तुम्हारे लिए
जीता या मरता हूँ।

कैसे किस कारण कोई
कह देता है
मुझे प्रेम हो गया है
क्या ये कोई बीमारी है।

नहीं 
सर्वथा नहीं 
बिना संशय 

प्रेम तो गुण है
कुछ कुछ वर्षा जैसी
जो सबको आनन्दित कर दे
न कि व्यक्ति विशेष को।

ये गुण आत्मा का है
प्रेम तो मन के दर्पण में
प्रतिबिंब परमात्मा का है।

प्रेम सुगन्ध है
ईश्वर के होने की
स्वाद के निर्भर स्रोत
जो नित नवीन और चिर है
अब सुगन्ध स्वाद को
शब्द सीमित नहीं कर सकते।

ये रोग नहीं जो हो जाये
वस्तु नहीं जो ली या दी जाए
कर्म नहीं जो करना हो
ऋण नहीं जो भरना हो।

एक बच्चा पोषित होता है
जब दूध के साथ माता
बिना कहे निश्छल प्रेम पिलाती है।
मनुष्य ही नही  जीवमात्र।

प्रेम है
कि ईश्वर ने हमारे लिए
बिना बताए फल बनाये 
वर्षा बनाई ऋतुएं बनाये
पालन करने को माता दी
और अब तक कि गूढ़तम रचना दी
जो कि ये अद्भुत शरीर है।
अनुभव तो करो

और जिसे तुम प्रेम कहते हो
वो भावनाओं का एक मोड़ है
इस प्रकृति में संतुलन बनाने हेतु
वैयक्तिक संरचनाओं का जोड़ है।

तुम्हारा प्रेमी मात्र रतिभाव
का आलम्बन है
ये प्रेम मुक्त नहीं करता
ये स्वयं एक बन्धन है।


दैनिक प्रतियोगिता हेतु।




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16 Comments

Bahut khoob 💐👍

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Khan

06-Oct-2022 11:54 PM

Bahut khoob 💐👍

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Gunjan Kamal

05-Oct-2022 06:25 PM

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति 👌👌

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